Friday, November 16, 2007

What Diwali reminds

अब दीवाली . . . .
अब नहीं बनाती मां िमठाई दीवाली पर
हम सब भाई बहन खूब रगड़ रगड़ कर पूरा घर आंगन नहीं चमकाते
अब बड़े भाई िदन रात लग कर नहीं बनाते
बांस की खपिचयों और पन्नीदार कागजों से रंग िबरंगा कंदील
और हम भाग भाग कर घर के हर कोने अंतरे में
पानी में अच्छी तरह से िभगो कर रखे गए दीप नहीं जलाते
पूरा घर नहीं सजाते अपने अपने तरीके से।
अब बच्चे नहीं रोते पटाखों और फुलझिड़यों के िलए
िज़द नहीं करते नए कपड़े िदलाने के िलए और न ही
दीवाली की छुिट्टयों का बेसॄी से इंतजार करते हैं।
हम देर रात तक बाज़ार की रौनक देखने अब नहीं िनकलते और न ही
िमट्टी की रंग िबरंगी लआमी, ऐर दसू री चीजें लाते हैं
दीवाली पर लगने वाले बाजार से
अब हम नहीं लाते खील बताशे, देवी देवताओं के चमकीले कैलेंडर
और आले में रखने के िलए बड़े पेट वाला िम􀂮टी का कोई माधो।
अब हम दीवाली पर ढेर सारे काडर् नहीं भेजते
आते भी नहीं कहीं से
काडर् या िमलने जुलने वाले।
सब कुछ बदल गया है इस बीच
मां बेहद बूढ़ी हो गई है।
उससे मेहनत के काम नहीं हो पाते
वह तो बेचारी अपने गिठया की वजह से
पालथी मार कर बैठ भी नहीं पाती
कई बरस से वह जमीन पर पसर कर नहीं बैठी है।
नहीं गाए हैं उसने त्यौहारों के गीत।
और िफर वहां है ही कौन
िकसके िलए बनाए
ये सब खाने के िलए
अकेले बुड्ढे बुिढ़या के पाव भर िमठाई काफी।
कोइ भी दे जाता है।
वैसे भी अब कहां पचती है इतनी सी भी िमठाई
जब खुशी और बच्चे साथ न हों . . .
बड़े भाई भी अब बूढ़े होने की दहलीज पर हैं।
कौन करे ये सब झंझट
बच्चे ले आते हैं चाइनीज लिड़यां सःते में
और पूरा घर जग जग करने लगता है।
अब कोई भी िमट्टी के िखलौने नहीं खेलता
िमलते भी नहीं है शायद कहीं
देवी देवता भी अब चांदी और सोने के हो गए हैं।
या बहुत हुआ तो कागज की लुगदी के।
अब घर की दीवारों पर कैलेंडर लगाने की जगह नहीं बची है
वहां हुसैन, सूजा और सतीश गुजराल आ गए हैं
या िफर शाहरूख खान या ऐश्वयार् राय और िॄटनी ःपीयसर्
पापा . . .छी आप भी . . .
आज कल ये कैलेंडर घरों में कौन लगाता है
हम झोपड़पट्टी वाले थोड़े हैं
ये सब कबाड़ अब यहां नहीं चलेगा।
अब खील बताशे िसफर् बाजार में देख िलए जाते हैं
लाए नहीं जाते
िगफ्ट पैक साइ ृूट्स के चलते भला
और क्या लेना देना।
नहीं बनाई जाती घर में अब दस तरह की िमठाइयां
बहुत हुआ तो ॄजवासी के यहां से कुछ िमठाइयां मंगा लेंगे
होम िडलीवरी है उनकी।
कागजी सजावट के िदन लद गए
चलो चलते हैं सब िकसी मॉल में,
नया खुला है अमेिरकन डॉलर ःटोर
ले आते हैं कुछ चाइनीज आइटम
वहीं वापसी में मैकडोनाल्ड में कुछ खा लेंगे।
कौन बनाए इतनी शॉिपंग के बाद घर में खाना।
मैं देखता हूं
मेरे बच्चे अजीब तरह से दीवाली मनाते हैं।
एसएमएस भेज कर िवश करते हैं
हर त्यौहार के िलए पहले से बने बनाए
वही ईमेल काडर्
पूरी दिुनया में सबके बीच
फारवडर् होते रहते हैं।
अब नहीं आते नाते िरँतेदार दीपावली की बधाई देने
अलबत्ता डािकया, कूिरयरवाला, माली, वाचमैन और दसू रे सब
जरूर आते हैं िवश करने . . .नहीं . . .दीवाली की बख्शीश के िलए
और काम वाली बाई बोनस के िलए।
एक अजीब बात हो गई है
हमें पूजा की आरती याद ही नहीं आती।
कैसेट रखा है एक
हर पूजा के िलए उसमें ढेर सारी आरितयां हैं।
अब कोई उमंग नहीं उठती दीवाली के िलए
रंग िबरंगी जलती बुझती रौशिनयां आंखों में चुभती हैं
पटाखों का कानफोड़ू शोर देर तक सोने नहीं देता
आंखों में जलन सी मची रहती है।
कहीं जाने का मन नहीं होता, शैिफक इतना िक बस . . .
अब तो यही मन करता है
दीवाली हो या नए साल का आगमन
इस बार भी छुिट्टयों पर कहीं दरू िनकल जाएं
अंडमान या पाटनी कोट की तरफ
इस सब गहमागहमी से दरू ।
कई बार सोचते भी हैं
चलो मां िपता की तरफ ही हो आएं
लेिकन शेनों की हालत देख कर रूह कांप उठती है
और हर बार टल जाता है घर की तरफ
इस दीपावली पर भी जाना।
फोन पर ही हाल चाल पूछ िलए जाते हैं और
शुरू हो जाती है पैिकंग
गोवा की ऑल इन्क्लूिसव
िशप के िलए।
Ñसूरज ूकाश

1 comment:

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